वर्तमान समय में बिहार के सभी डायट में प्रशिक्षु आज
किसी ना किसी विद्यालय में शिक्षक है | इनके पास ज्ञान का भंडार है | कुछ नई चीजों
को जानने के लिए उत्सुक तो कुछ प्रशिक्षण को भंग करने को तैयार | इन्हें प्रशिक्षण
देने से पहले अपने आप को तैयार करना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि ना जाने ये कब अपनी
समस्याओं से भरे सवालों की बौछार कर दें | जैसे – अपनी पुरानी पद्धति को छोड़ नई पद्धति
का प्रयोग, कुर्सी पर बैठे रहना, छड़ी का प्रयोग आदि | अपने सवालों से इतना भटका
देते हैं कि कभी-कभी मुद्दों को ही बदल देते हैं | कोई एक सवाल करता है तो उसके पीछे
कई लोग खड़े हों जाते हैं |
लेकिन कमाल के प्रशिक्षण के दूसरे दिन से लोग इसे
समझने लगते हैं और कक्षा संचालन तक आते-आते ऐसा लगता है मानों वे अपनी आदतों को
भूल गए है| “कमाल“ के प्रभावी प्रशिक्षण के बाद डायट के प्रशिक्षु अपनी पुरानी
आदतों को से दूर बच्चों के बीच खड़े होकर कमाल के माध्यम से पढ़ाते हुए नजर आयें | मैं
सभी के बारे में तो ऐसा नहीं कह सकती पर, कुछ जगहों पर ऐसा देखने को मिला | इसलिए
मैं कह सकती हूँ कि “कमाल” ने प्रशिक्षुओं को अपनी आदतों में बदलाव लाने के लिए
किया प्रेरित |
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